मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

'आई लव यू' का अर्थशास्त्र

टाला झिल पार्क में बैठा हूँ। बहुत ही खूबसूरत है यह पार्क। यहाँ सुबह-सुबह लोग 'मार्निंग वाल्क' के लिए आते हैं। आम, गुलमोहर, शिशम, सफेदा, अशोक आदि के सुन्दर वृक्ष, सजावटी पौधों की करीने से कटाई की हुई कतारें, गुलाब, जावा, रात रानी, चमेली के फूल और इन सबके बीच में विशाल तालाब! आहा क्या फिज़ा बनती है सुबह में! आजकल तो अंग में हल्की प्यारी सिहरन करने वाली शीतल वसंती हवा और उगते हुए सूरज के साथ ही रंगबिरंगी चिड़ियों की चहचहाहट मन को मोहित कर ले रही है। फिर मंजरों के भार से झुक गयीं आम की डालियों से जब कोयलिया कूहूऊऊऊ - कूहूऊऊऊ करती है तो प्रकृति की यह मनोहारी सुषमा मन को अनुपमेय आनंद का अनुभूति कराती है। मैं तो समय का ज्ञान भूल जाता हूँ।

इसी झील पार्क में शाम को सभी बेंचों पर वर्षों से प्रेमालाप करते आ रहे हैं प्रेमी युगल। इनकी ही प्रेरणा से मेरा मन हुआ कि थोड़ा सा, इनके वर्ष भर प्रतिक्षा के बाद आने वाले 'वेलेन्टाइन डे' के बारे में जानें। चातक के स्वाति जल की आश!!!
खैर इसके इतिहास और रीति परंपरा के बारे में अब सब जानते हैं सो मैं उधर नहीं जाऊंगा। आजकल भावनाओं को व्यक्त करने के लिए भी कुछ वस्तु विशेष की जरूरत पड़ती हैं। 'माॅल संस्कृति' में मुहब्बत भी गुलाब, चॉकलेट, टेडी बियर, रिंग आदि के द्वारा बयां की जा रही है। नहीं तो चित्रा जी की आवाज़ में कहूं तो - 

"कौन कहता है मुहब्बत की जुबां होती है

ये हकीकत तो निगाहों से बयां होती है"

अस्तु, जैसा युग वैसा उपक्रम। सो मैने सोचा जरा मुहब्बत के इस सजे हुए बाजार पर भी नजर डाली जाए। मैं जैसे- जैसे इस बाजार के नजदीक गया, आश्चर्य बढता गया। आप भी जैसे -जैसे आगे बढ़ेंगे आपको भी आश्चर्य होगा।

ये 'आई लव यू का अर्थशास्त्र' इतना बड़ा होगा,कल तक मुझे इसका अंदाज़ भी नहीं था । बाजारों में घुमने के बाद, जब विभिन्न संस्थानों के रिपोर्ट देखे तो समझ में आया कि हमारे देश के बेरोजगार प्रेमी भी कितने उदारमना ग्राहक हैं इस 'माॅल संस्कृति वाले मुहब्बत के युग में'!!

जी न्यूज ने एक स्वतंत्र सर्वे एजेंसी की रिपोर्ट 13 फरवरी 2013 को जारी की थी। यह रिपोर्ट बङे मेट्रोपॉलिटन शहर के 800 एक्जीक्यूटिव, 150 शैक्षणिक संस्थानों के 1000 विद्यार्थियों, आईटी कंपनी में कार्यरत युवाओं के बीच सर्वे के बाद तैयार की गई थी। इसमें मुख्यतः यह पुछा गया था कि आप इस वेलेन्टाइन डे पर कितना खर्च करने की योजना बना रहे हैं? किस वस्तु पर कितना खर्च करेंगे आदि से संबंधित प्रश्न थे।
मजेदार बात यह सामने आयी कि पुरुष महिलाओं से दुगुना खर्च करते हैं और 40-50 आयु वर्ग के लोग भी खुब खरीदारी करते हैं। आंकङे खुब गुदगुदायेंगे मगर मोटे तौर पर बता दें कि साल 2013 के वेलेन्टाइन सप्ताह में भारतीयों ने ₹ 15,000 करोड़, साल 2014 में ₹ 18,000 करोड़ (ट्रेक. इन की खबर) और विगत वर्ष ₹16,000 करोड़ रुपये की दिलफेंक खरीदारी की। 

प्रेमी ग्राहक वर्ग में 18-24 आयु वर्ग के लोगों ने ज्यादातर चाकलेट, फूल, टेडी बियर आदि का उपहार लेन देन किया। 25+ आयु वाले गहने, गैजेट्स, घड़ी, स्मार्ट फोन के उपहार में खर्च किया।35+ आयु वर्ग वाले इसके साथ-साथ रात में बाहर किसी बड़े रेस्तरां में भोजन करने, टूरिस्ट प्लेस पर घुमने आदि में भी खर्च किया। इसमें ज्यादातर बङे कार्पोरेट जगत के कर्मचारी, आईटी प्रोफेशनल्स व बीपीओ में कार्यरत लोग शामिल हैं।

अस्तु ये आंकड़े आपको बोझिल न कर दें इसलिए हम वो आंकड़ों का काम एसोचैम के इस साल के इस अनुमान के साथ ही खत्म कर देते हैं। इस बार एसोचैम ने कहा है कि इस वेलेंटाइन सप्ताह में भारतीय बाजार ₹ 22,000 करोड़ का होगा। यानी पिछले साल से लगभग 40% ज्यादा!! यार, इतना तो आय में वृद्धि भी नहीं होती एक साल में!!!

गौर करने वाली बात यह है कि ये सर्वे चंद लोगों और कुछ बङे शहरों के बीच ही कराये जाते हैं। परन्तु द्वितीय और तृतीय श्रेणी के भारतीय शहरों के बाजार भी इस सप्ताह में भारी मांग के कारण अच्छी कमाई करते हैं। फिर शहरों से जुड़े गांव व विभिन्न राज्यों के जिला केन्द्र में रहने वाले लोगों की संख्या जो इस आकर्षक सप्ताह में खुब खरीदारी करती है, इन आंकड़ों में नहीं आ पाती। इस्टीमेशन के आधार पर आंकड़े बता दिये जाते हैं परन्तु वास्तविकता यह है कि बाजार इन आंकड़ों से कही ज्यादा बङा है।

अब बात जब अर्थतंत्र की हो रही है तब इस वेलेंटाइन सप्ताह के बाजार के कारण होने वाले नफा नुकसान पर भी थोड़ी बात होनी चाहिए। गौरतलब है कि ज्यादातर उपहार के लिए प्रयुक्त वस्तुएं छोटे उद्योगों, कुटिर उद्योगों और किसानों के उत्पाद से संबंधित हैं चाहे वो चाकलेट, केक, मिठाई, या फिर मोमबत्ती, टेडी बियर, या गुलाब हो। पर्यटन स्थलों पर भी छोटे दुकानदारों को ज्यादा ग्राहक मिलते हैं। बङे ब्रांड भी प्राथमिक तौर पर छोटे-छोटे कामगारों या कुशल, अर्द्धकुशल मजदूरों से काम करवाते हैं। इससे गैजट्स एसेम्ब्लींग, गहनों की कढाई और सजावट आदि के पेशे से जुड़े लोगों को काम मिलेगा। उनकी आय में वृद्धि होगी।

भारत में वेलेन्टाइन डे के सांस्कृतिक पक्ष पर ज्यादा कुछ नहीं क्योंकि अपना विषय अर्थतंत्र केन्द्रीत है। फिर भी। भारत में पारंपरिक रूप से वेलेन्टाइन डे तो नहीं मनाया जाता रहा है परन्तु पश्चिम के इस नाम से अलग लेकिन थोड़े अलग तरीके से भारत में भी 'मदनोत्सव', वसंतोत्सव जैसे प्रेम केंद्रीक उत्सव मनाये जाते रहे हैं। वाम मार्गी साधना (कृपया इसे वामपंथ से न जोड़े, यह एक साधना पंथ है) में साधक तो मदनोत्सव को बङे धुमधाम से आयोजित करते हैं और अपनी साधना को ऊच्च स्तर पर ले जाने के स्तर को परखते हैं।

खैर, संस्कृति के इस संक्रमण काल में विभिन्न प्रकार के मत सामने आयेंगे। चर्चाएं होंगी। माहौल में थोड़ी ऊथल पुथल रहेगी। जैसा कि साधारणतया हर संक्रमण के दौरान होता है।
प्रेम के नाम पर बढते इस बाजार ने मेरे मन में एक स्वाभाविक प्रश्न को जन्म दिया है। 

अखिर इस संस्कृति के संक्रमण काल में बढ क्या रहा है दो संस्कृतियों या व्यक्तियों के बीच प्यार या बाजार??

सुधि पाठक!
आप चिंतनशील हैं। हमें सोचना चाहिए क्योंकि बाजार तो व्यक्ति के जीवन में प्रेम लाने में अत्यन्त अल्प मात्रा में सहायक है परन्तु जीवन का उद्देश्य है आनंद जो प्रेम-पथ से ही पाया जा सकता है। प्रेम बढे प्यास नहीं, यही हमारे ऋषि परंपरा और भारतीय संस्कृति की गौरव और हमारे स्वस्थ समाज के लिए आज के समय की मांग है।

राष्ट्रस्योत्थानपतने राष्ट्रियानवलम्ब्य ही
(राष्ट्र का उत्थान या पतन राष्ट्रियों के ऊपर ही निर्भर करता है)
मैं आपके अंदर स्थित प्रज्ञ आत्मा को प्रणाम करता हूँ।
उत्तिष्ठ भारतः 

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