शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

काले धन के लिए कीमोथेरेपी है डिमोनेटाइजेशन

छठ पूजा के बाद गांव से लौट रहे थे। 9 तारीख की अलसुबह बस पकड़ी थी सिवान के लिए। सभी सवारी बस कंडक्टर को किराय दे रहे थे। बहुत से लोगों ने ₹500 का नोट दिया था। छुट्टा नही होने बाद भी आदतन कंडक्टर ने नोट ले लिया। बस महराजगंज पहुंची। “भाई हमारे बाकी के पैसे लौटाओ जल्दी, हमे उतरना है“। सभी कहने लगे। कंडक्टर छुट्टा कराने के लिए गया। थोड़ी देर में लौटते ही ₹ 500 के नोट देने वाले सभी सवारियों को यह कहकर लौटाने लगा कि” नहीं चलेगा भई ये नोट, कोई दुकानदार नही ले रहा है। सुना है कि ई पंसउआ आ हजार के नोट बंद कर दिया है सरकार ने “। बस में बहुत से लोगों को पता था। पर मैं अनभिज्ञ था। अब गांव में बिजली नही आती।सोलर पैनल पर आश्रित बहुत-सी मोबाइलें विरोध का झंडा न उठा लें इसलिए काम भर ही सेवा लेता हूँ। मोबाइल देखने के ही काम में आता है ज्यादातर। फिर इन्टरनेट से तो बैट्री भी जल्दी खत्म हो जाती है। सुबह जाना है सो रात को जल्दी सो गया था। राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री का संबोधन नहीं सुन पाया था।

तभी “पंसउआ बंद! पंसउआ बंद!! कहता हुआ एक 14-15 साल का किशोर साइकिल पर पेपर बांधे आ रहा था।
” भाई एक प्रभात देना “
पहला पन्ना और हेडलाइन कंडक्टर की बात के साथ सहमत थे। ईकोनामिक्स ग्रेजुएट होने के कारण दिमाग में कौंधा -” अरे ये तो डिमोनेटाइजेशन हो गया! “
कल तक जिसे पढा था आज उसी के कारण मेरे जेब में रखे ₹500 के 4 और ₹1000 के 2 नोट अब बस रंगीन चमकदार कागज बन गए हैं। छोटे नोट रखने की आदत ने बचा लिया।

वास्तव में डिमोनेटाइजेशन या विमुद्रीकरण ईकोनाॅमी में उपलब्ध करेंसी या मुद्रा का लिगल टेंडर की वैधता समाप्त कर देने को कहा जाता है। जब कभी नियामक संस्था को ऐसा लगता है कि जाली नोटों, मनी लॉन्ड्रिंग व अवैध रूप से वृहत्तर स्तर पर मुद्रा का लेन देन, जिससे राष्ट्रीय अर्थतंत्र को क्षति पहुंच रही हो तो सरकार एक नोटिस जारी कर पुराने नोटों को नये नोटों में बदल देती है। इसमें सरकार, केंद्रीय बैंक (हमारे देश के संदर्भ में रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया), आर्थिक सलाहकार सभी की योजना पर सहमति ली जाती है।

अगर हम भारत को 8 नवंबर 2016 की 12 बजे रात तक की अर्थव्यवस्था में ₹500 और ₹1000 के नोटों की चलन को देंखे तो रिजर्व बैंक के रिपोर्ट 2015-16 के अनुसार यह 86% रही है। भारत की REAL GDP (2015-16 )113.5 लाख करोड़ रुपए है। ₹500 & ₹1000 के बैंक नोट की एकाउंटेंड वैल्यू भारत के रियल जि डि पी के लगभग 12% के बराबर हो रही है!! हम हम समझ सकते हैं कि ये बैंक नोट हमारी इकॉनमी के कितने बङे हिस्से में ‘इंटिग्रल पार्ट’ की तरह है! हम सभी जानते हैं कि भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के लिए लंबे समय से विभिन्न संस्थाओं और संगठनों द्वारा आंदोलन किया जा रहा है। मांग की जा रही है। यह सबसे आकर्षक मुद्दा रहा है, चुनावों का। विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा सरकारों को परामर्श दिया जाता रहा है कि सभी बङे नोटों को समाप्त कर दिया जाए परन्तु हमारी अर्थव्यवस्था इतनी बड़ी है कि सभी बङे नोटों को समाप्त करने से बहुत सारी टेक्नीकल समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए सरकारें ऐसा करने से बचती रही हैं। परन्तु इस सरकार ने एक नये बङे नोट (₹2000) को जारी कर एक साहसिक कदम उठाया है। इस कदम से हमारी इकॉनामी पर क्या प्रभाव पड़ेगा इस पर हम संक्षिप्त रुप में बात करेंगे। हालांकि मैं कोई अर्थशास्त्री नही हूँ। एक अर्थशास्त्र स्नातक मात्र हूँ। जो पढा है और गांवों, शहरों व कोलकाता महानगर के लोगो को व विभिन्न प्रकार के बाजारों को देखा है, कभी क्रेता के रूप में तो कभी किसी प्रोजेक्ट पर काम करते हुए, उसी आधार पर बात किया जाएगा।

इस डिमोनेटाइजेशन से देश के आर्थिक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा? मुझे ऐसा लगता है कि इससे देश का आर्थिक स्वास्थ्य सुधरेगा। हमारी अर्थव्यवस्था में एक और समानान्तर अर्थव्यवस्था अवैध रूप से चलती है जिसे हम लोग काले धन की अर्थव्यवस्था कहते हैं। यह काला धन अर्थतंत्र का कैंसर है। आप पाठकों की रूचि विशेषकर इसी कैंसर के इलाज अथवा प्रभाव पर ज्यादा होगी। स्वाभाविक भी है। हाॅट टाॅपिक और ट्विटर ट्रेंड जो है।

एक बात स्पष्ट है कि काला धन कितनी मात्रा में हमारी इकॉनामी में है, इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है परन्तु निश्चित कहना लगभग नामुमकिन है। तो आप भी सोचिये और अंदाजा लगा लिजिए। ध्यान रहे कि काला धन सिर्फ नगदी में ही नही होता यह ‘मेटल (सोना, चाँदी, प्लेटिनम आदि) गहने, रियल एस्टेट प्रापर्टी में निवेश, स्विस एकाउंट, विदेशी मुद्रा, आदि के रूप में भी रहता है। स्पष्टतः काला धन माने सरकारी एजेंसी की नजर से छुपा कर टैक्स नही दिया हुआ धन। अब हो सकता है कि आपके दिमाग में वह गरीब माँ अथवा पिता आयें जो अपने बच्चों के लालन – पालन व शिक्षा के लिए भी नकदी के रूप में पैसा अपने पास रखते हैं। साधारणतया यह राशि ₹ 2.5 लाख से कम होती है या कृषि कार्य व विपणन द्वारा अर्जित की जाती है। दोनों ही कर मुक्त हैं सो हमे चिंता करने की जरूरत नहीं कि हमारी खुन पसीने की गाढी कमायी “काला धन” कहलायेगी! जिनकी अन्य स्रोतों से इससे ज्यादा राशि नकदी जमा है वो अपना स्रोत बता कर अपने नकदी को वैध ठहरा ही सकते हैं।
अस्तु, काला धन निकालने के लिए या तो काला धन जिनके पास है (व्यक्ति या संस्था) वो स्वयं ही घोषित कर दें (VDIS – Voluntarily Discloser of Income Scheme) या सरकारी संस्थायें खोजे, पकड़े और कानूनी कार्रवाई करें या फिर वे काले धन जिस मुद्रा के रूप में संग्रहित है सरकार उसे ही अवैध घोषित कर दे। मेरी समझ से ये तीन रास्ते हैं। सरकार ने 30 सितम्बर 2016 तक स्वयं घोषणा करने का मौका दिया। लोगों ने किया भी। सरकारी एजेंसियों के द्वारा भी काम किया जा रहा है परन्तु इतनी बड़ी रकम जो एक समानांतर अर्थव्यवस्था का रूप ले चुकी हो के लिए यह आटे में नमक के बराबर है। सो तीसरा रास्ता नोटों को अवैध करार देना इन दोनों कदमो के बाद उपयुक्त लगता है। हालांकि यह भी 100% काला धन का उन्मूलन नही कर सकता क्योंकि डिमोनेटाइजेशन नकदी राशि के उपर ही लागू हो रहा है जो ₹500 & ₹1000 के नोट के रूप में हैं। परन्तु ये नोट भी तो 86% चलन में हैं!!अन्य नोटों और रूपों में संग्रहित काला धन अभी भी रह जाएगा। परन्तु जो राशि अवैध हुई वह बहुत बड़ी है और इससे हमारे मानिट्री पॉलिसी और फिसीकल डेफिसीट पर प्रभावी और सकारात्मक असर पड़ेगा। जैसे सिर्फ कीमोथेरेपी देने से कैंसर ठीक नहीं हो जाता उसी प्रकार सिर्फ ₹500 & ₹1000 के नोटों का डिमोनेटाइजेशन कर देने से ही पूरा काला धन अनुपयोगी नही हो जाएगा। इसके अन्य रूप बचे रहेंगे। सरकार की प्रतिबद्धता, साहसिक और सुनियोजित कदम, समाज का सहयोग, वैश्विक संस्थाओं के सहयोग और सबसे बड़ी बात इस देश के हर नागरिक के अपने राष्ट्रीय अर्थतंत्र के प्रति इमानदारी की प्रवृत्ति ही इस कैसर को समाप्त कर सकती है। जो अभी बहुत दूर है। अभी तो यात्रा शुरू ही हुई है। हम बस थोड़ी और बात करेंगे। सामाजिक और सबके जीवन पर होने वाले प्रभावों पर अतिसंक्षिप्त बात होगी।
डिमोनेटाइजेशन के कारण सभी लोग अपनी राशि बैंको में जमा कर रहे हैं। IT डिपार्टमेंट की सब पर नज़र हैं। इससे लेन देन का डिजिटाइजेशन भी हो रहा है। अनएकाउंटेड राशि भी एकाउंटेंड राशि में बदल रही है। जो काला धन वाले नगदी जमा कर रहे हैं। उनसे टैक्स के साथ-साथ 200% जुर्माना भी लिया जाएगा। मतलब साधारण अंकगणित के हिसाब से 90% तक धन सरकारी खजाने में चला जाएगा और 10% उनके पास बचेगा।

इस जमा से क्या लाभ होगा??

*जितनी ज्यादा राशि जमा होगी उतना ज्यादा हमारा Monetary base expand होगा ।बैंको में Money Supply बढेगी ।स्पष्टतः LOANABLE राशि बढेगी। अगर हम IS-LM MODEL के money market concepts से ही समझना चाहें तो यह कह सकते हैं कि मनी सप्लाई बढने से rate of interest घटेगा ।इससे investment बढेगा।

*जब investment बढेगा तभी आधारभूत संरचनाओं का विकास होगा। अत्याधुनिक तकनीक, उपकरण आदि हमारे skilled Labour force को मिलेगा। जो कामगार आबादी अकुशल है उन्हें कौशल अर्जन करने के सस्ते दामों में अवसर प्राप्त होंगे। आर्थिक विकास के नये आयाम स्थापित होंगे।

*इस जमा होती राशि से ब्याज दरों के Natural equilibrium में आने की पूरी संभावना है। इससे सबसे ज्यादा लाभ किसे होगा यह दृष्टिकोण पर और भविष्य की योजनाओं पर निर्भर करेगा। परन्तु साहूकारों के चंगुल से आबादी का कुछ हिस्सा छुट कर बैंक से निकटता स्थापित कर पायेगा क्योंकि बैंक भी लोन देने के लिए ग्राहकों की खोज में रहेंगे। गांवो, छोटे व मध्याकार शहरों की साधारण जनता लाभान्वित होगी।

*अगर किसान इस सस्ते ब्याज दर का लाभ उठा पाते हैं तो उनकी आत्महत्या में कमी आयेगी।

*नये-नये स्टार्ट अप को मदद मिलेगी। नवोन्मेषी उद्यमियों के नये वर्ग का उत्थान होगा।
*प्लेसमेंट होगा कि नही, यह ठीक नहीं है परन्तु आशा के आधार पर जो लाखों विद्यार्थी शिक्षा ऋण लिये हैं। उनकी बोझ यह कमने वाला ब्याज दर कम करेगा। जो ऋण लेने की कतार में खड़े हैं, उन्हें सहूलियत होगी। कारण बैंक विश्वसनीय ग्राहक की खोज में रहेंगे।

*INVESTMENT बढने से कामगार आबादी की आय बढेगी। मतलब जीवन स्तर उन्नत होगा। फिर एक नये Saving – investment cycle में हमारी अर्थव्यवस्था प्रवेश प्रवेश करेगी जो उत्तरोत्तर विकास करती जाती रहनी चाहिए। (कोई वैश्विक आर्थिक संकट या आयल इकोनॉमी में समस्या न आये तब)

*नकदी के रूप में छिपाये गये काले धन की formal economy में शामिल होने पर टैक्स कलेक्शन बढेगा अर्थात सरकार की आय बढेगी। इससे हमारा देश जिस fiscal deficit से भुगत रहा है वह कम होगा।

*अगर लंबे समय तक टैक्स कलेक्शन ऐसे ही इमानदारी सेे होता रहा और बढता रहा (बढता रहेगा क्योंकि economy expand करती है) तो TAX RATE और TAX BRACKET में एक रेशनल संबंध स्थापित होगाजिसका लाभ मेरी आयु वर्ग के युवाओं को ज्यादा होगा जो अभी भी कामगार आबादी में शामिल नही हुए हैं परन्तु 5-6 सालों में होगें।

*रियल एस्टेट को काला धन का स्रोत और गंतव्य दोनों कहा जाता है। कटु सत्य है। डिमोनेटाइजेशन से अब फ्लैट के दाम गिरेंगे। कारण नकदी हस्तांतरण पर नज़र। जो 30-40% नगदी लेन देन होता रहा है। उस पर रोक लगेगी। अन्य विवरणों में जाने से बात बङी हो जाएगी।

*फ्लैट के दाम कमने से शहरी निम्न मध्य वर्ग  अपने फ्लैट के सपने सच होने के आशा को बल मिलेगा।

इस डिमोनेटाइजेशन के विभिन्न आर्थिक लाभों की और गहराई में जाया जा सकता है परन्तु अब हम थोड़ी सीबिंदूवार नजर समाज में होने वाले परिवर्तन पर डालेंगे :-

*इस डिमोनेटाइजेशन ने हवाला कारोबार का दिवाला निकाल दिया।

*आतंकवादीयों की फंडिंग लाइन कट गई। काश्मीर सांस ले रहा है अभी। जो रूपये भविष्य में विभिन्न जगहों पर आतंकी गतिविधियों के लिए रखी गयी थी वो ज्यादातर बङे नोट में रहती है, सब कागज की ढेर हो गयी। एक सप्ताह में नोट बदलने की अधिकतम सीमा तय होने से साधारण आदमी तो ठीक है पर ये लोग इन 5-6 सप्ताहों में कितना बदलेंगे। इस बदलने की प्रक्रिया में स्लीपरसेल्स भी सामने आयेंगे। पहचान पत्र के कारण। जिन पर एजेंसियों को शक होगा उनके ट्रांजैक्शन इसे मजबूत करेंगे।

*नक्सलियों की नाक भी माटी के उस गड्ढे में दब गयी है जहां पर जबरन वसूली और विदेशी फंड दबा कर रखे रखे गए हैं।

*चुनावों में मतदान और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए जिन राशियों का प्रयोग होता वो बेकार। अब उस स्तर पर धन का अवैधानिक प्रयोग नही किया जा सकता है जितना बेहिसाबी होता था। हम एक तुलनात्मक रूप से अच्छे ओर फेयर चुनाव की बात सोंच सकते हैं।

*नकली नोटों के सप्लाई से Economic attack करने वाला बांग्लादेश – पाकिस्तान मुंह ताकता रहेगा। isi योजनाओं के पेपर से हवा करेगी। जाली नोट की समस्या से कुछ हद तक इस डिमोनेटाइजेशन ने निजात दिलायी।

*इन नकली नोटों से नाइजीरियाई देश अफ्रीका के देशादि भारत में खुब ड्रग्स के बाजार में पैठ बनायी हुई थी। अब ड्रग्स महंगे हो सकते हैं। ये कारोबार बुरा फंसा हुआ है डिमोनेटाइजेशन से।

*असामाजिक तत्वों की फंडिंग पर प्रभाव जिससे सामाजिक सौहार्द और शांति बनाये रखने में प्रशासन को मदद मिलेगी।

*अंधाधुंध धर्मांतरण में लगी देशी-विदेशी शक्तियों के कमर टूट चुके हैं। गरीब, सीधे मन वाले वनवासी इनके चंगुल में फंसने से बचेंगे।

*राष्ट्रीय सुरक्षा और संरक्षा के लिए घातक तथा देश के विकास में बाधक लाॅबिंग करने वाली शक्तियाँ कमजोर होंगी।

*विदेशी पूंजी और उनके इशारे पर चलने वाले एन जी ओ और मिशनरी विदेशी पूंजी के दम पर भारत में सामाजिक अस्थिरता लाने के लिए जिस तरह काम कर रहे थे उस पर नकेल कसा गया।
ऐसे अनेक प्रत्यक्ष और परोक्ष लाभ सज्जन समाज को मिलेगा। काले धन के कैंसर के लिए यह डिमोनेटाइजेशन एक असरकारी कीमोथेरेपी है। परन्तु समूल नाश के लिए हमारी आर्थिक व्यवहार की संस्कृति में परिवर्तन की आवश्यकता है और अभी काले धन और काले मन के अन्य रूपों पर और भी आक्रामक ओर प्रभावी प्रहार की नितांत आवश्यकता है। इस यात्रा की शुरुआत का यह एक ईमानदार कदम हैं। युद्ध स्तर पर काम कर रहे सभी बैंक कर्मियों, टकसाल कर्मी, नोटों के परिवहन में लगी संस्थाओं, इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने वालों और लंबी लाइन में लग कर इस आवश्यक परिवर्तन का सोत्साह समर्थन करने वाली इस देश की अबालवृद्धनरनारी को हार्दिक धन्यावाद देते हुए आपके अन्दर स्थिति प्रज्ञ आत्मा को मैं प्रणाम करता हूँ।

उत्तीष्ठ भारतः

गुरुवार, 3 नवंबर 2016

उगी हे सुरुज देव करी भिनुसार

छठ महाव्रत : समरसता का लोकपर्व

कल नहा खा है। अंधेरी रात है। घड़ी की सुई का टिकटिक-टिकटिक सुनाई दे रहा है। बरामदे के बगल वाले कमरे में अपनी खाट पर लेटी हुई दादी बीच-बीच में मधुर स्वर में गाने लगती है। "काच ही बांस के बहंगीया...बहंगी लचकत जाए..."
मेरे पिता जी के जन्म से पहले से ही दादी छठ पूजा करती हैं। कुछ वर्षों से माँ भी कर रही है। इस बार छोटी चाची भी करेंगी। ऐसी ही परंपरा है।बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी इस व्रत से हजारों सालों से लगातार ऐसे ही जुड़ती चली आ रही है।
कार्तिक मास के चतुर्थी की सुबह से शुरू होकर यह व्रत सप्तमी की सुबह के अर्घ्य के बाद विधिवत् पारण के साथ खत्म होता है। चार दिन चलने के कारण इसे चतुर्दिवशीय महापर्व भी कहते हैं। चूकि सूर्य को पहला अर्घ्य षष्ठी के शाम को ही देते हैं इसलिए इसे षष्ठ महाव्रत या लोकाचार की भाषा में छठ पूजा कहते हैं।अराधना के केंद्र में भगवान सूर्य होते हैं इसलिए इस पूजा को सूर्य पूजा या सूर्य महापर्व भी कहा जाता है। परन्तु छठ पूजा के नाम से यह महाव्रत प्रसिद्ध है।इस पर्व के केंद्र में सूर्य देव होने के पिछे एक पौराणिक कथा है। कहते हैं कि राक्षसों के साथ युद्ध के समय देवताओं ने शिव-पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को अपना सेनापति बनाया। वे जब युद्ध के लिए जा रहे थे तब माता पार्वती ने कार्तिकेय की मंगल एवं जीत के लिए एक नदी के किनारे निर्जला व्रत रखा और अस्तांचलगामी सूर्य को उस नदी के जल से अर्घ्य दिया। उस देवासुर संग्राम में देवों की जीत हुई। इस जीत के बाद माता पार्वती ने सप्तमी की सुबह में सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया। फिर अपना व्रत तोड़ा। इसके बाद से सूर्य देव की पूजा षष्ठ यानि छठ पूजा शुरू हुई।

पहले यह पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग करते थे। परन्तु काम की तलाश में, व्यापार करने के लिए या अपनी पोस्टिंग के कारण जब इस क्षेत्र के लोग देश के विभिन्न प्रांतों में रहने लगे तब धीरे-धीरे वहां पर भी छठ पूजा शुरू हो गई। मुंबई, कोलकाता, गोवा, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली आदि जगहों पर तो सरकारों को विशेष रूप से पूर्ण व्यवस्था करनी पड़ती है जिससे व्रतियों को कोई असुविधा का सामना न करना पड़े। कोलकाता का गंगा घाट, दिल्ली की यमुना का तीर, मुंबई व गोवा के सागर तट छठ पूजा के दिन जगमग करते हैं। आनंद, आस्था और पवित्रता का पारावार लहराता है संपूर्ण समाज के मन में। अब यह पर्व देश की सीमा के पार विदेशों में भी मनाया जा रहा है। पीढ़ियों से जो लोग छठ पूजा करते आ रहे हैं वे विदेशी धरती पर भी इसे नही छोङे है। नहीं जा सकते तो यहीं सही मगर करेंगे। यही भावना इस कठिन व्रत को भी लोक आस्था का पर्व बना देता है।

यह व्रत सच में कठिन है। कारण है शुद्धता और पवित्रता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। परन्तु हमारे जीवन और प्रकृति के साथ इस तरह मिल जाती हैं इसकी विधियां की व्रती आस्था एवं उत्साह में इस कष्ट को आनंद में बदल देते हैं। साथ में खङा होता है पूरा परिवार व समाज। इस व्रत के पहले दिन यानि कार्तिक मास की चतुर्थी के दिन "नहा-खा" होता है। इस दिन व्रती स्नान ध्यान करके सूर्य देव से प्रार्थना करते हैं कि "हे छठी मइया हम आपका व्रत करने जा रहे हैं।" फिर लौकी जिसे कद्दू 🎃 भी कहते हैं की सब्जी और भात 🍚 खाते हैं। प्याज लहसुन नहीं खा सकते। दूसरा दिन यानि पंचमी के दिन "खरना" होता है। इस दिन व्रती निर्जला उपवास करतीं हैं। सूर्योदय से सूर्यास्त तक। सूर्यास्त के बाद साठी के चावल, गाय का दूध और गुण से नये बने मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी के जलावन से खीर बनाया जाता है। गेंहू की रोटी बनती है। कुछ फल रहता है। फिर व्रती पूजा कर के अपने थाली में से प्रसाद जिसे भोजपूर क्षेत्रों में अगराशन कहते हैं निकाल देते हैं। फिर वो भोग ग्रहण करते हैं तब जाकर परिवार के सदस्यों को यह भोजन मिलता है। व्रत के तीसरे दिन यानि षष्ठी के दिन व्रती निर्जला उपवास करतीं हैं। परिवार के सदस्य बाजार से सारे मौसमी फल, ईंख, बांस की बहंगी (स्थानीय समाज में प्रचलन के अनुसार अन्य नाम भी होते हैं) पानी वाला नारियल, आदि पूजन सामग्री खरीद लाते हैं। शाम को व्रती और परिवार के सारे सदस्य जलाशय के किनारे गीत गाते हुए, नंगे पैर जाते हैं। बहंगी या डलिया माथे पर ले जाने का प्रचलन है। परन्तु अब दूरी और वजन के हिसाब से लोग गाङी का प्रयोग भी करने लगे हैं। विशेषतः महानगरों व बङे शहरों में। सूर्यास्त के समय जलाशय (नदी, तालाब, पोखरा, झील आदि) में उतरकर अर्घ्य देते हैं। फिर अपने घर लौट आते हैं अथवा कहीं-कहीं वहीं पर ही रहते हैं। फिर कोशी भरा जाता है। इसमें ईख को चारो तरफ खङा करके एक पिरामिडनुमा आकार बनाते हैं। फिर उसमें सभी फल, पूरी, ठेकुआ, खजूर सजाते है। दीप प्रज्वलित कर परिवार के सभी सदस्य एकत्रित होते हैं। माता भगिनी पारंपरिक गीत गाती हैं। अगली सुबह यानि सप्तमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जलाशय तट पर भी इसी तरह कोशी भरा जाता है। फिर सूर्योदय के समय अर्घ्य देकर व्रती अपने घर लौट आते हैं। पारण के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है।

इस कष्टसाध्य व्रत को सरस, आनंददायक और उत्साहमय वातावरण प्रदान करते हैं इसके गीत। एकदम स्थानीय, पारंपरिक और बोलचाल की भाषा में। इन गीतों में शास्त्रीयता नही आत्मीयता होती है। राग लय और अलंकार की विशेष समझ नही परन्तु सांघिकता भरपूर होती है। इनमे समाज कल्याण और परिवार के मंगलकामना की प्रार्थना होती है तो प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव होता है।

हिन्दू संस्कृति में पर्व, त्योहार और उत्सवों का अपना-अपना सामाजिक महत्व ोता है। वैज्ञानिक आधार होता है। हम छठ पूजा का पहले सामाज जीवन में पङने वाले प्रभाव और संदेश को देखते हैं। इस पूजा को मुख्यतः हिन्दू परंपरा को मानने वाले ही कुछ लोग करते थे। परन्तु अब अन्य उपासना पद्धति के मानने वाले भी विधिवत् छठ पूजा करते हुए देखे जा सकते हैं। हिंदी भाषी क्षेत्र का सीमोल्लंघन कर आज यह व्रत अन्य भाषा भाषी लोगों के द्वारा भी किया जा रहा है। विभिन्न अवसरों पर जातियों में बंटा दिखने वाला यह विराट समाज छठ पूजा के दिन एक साथ एक जग एकात्म भाव से एकत्रित होता है। इसमें प्रयुक्त पूजन सामग्री प्रायः कृषि उत्पाद हैं और सस्ती है। समाज क हर वर्ग के क्रय शक्ति के अंदर है। अमीर सोने का सेव नही चढा सकता और गरीब माटी का नही। दोनों वही केला. वही सेब 🍎 चढाते है। जलाशय का जल सभी के लिए। इससे समाज के प्रत्येक वर्ग में समता समरसता एकता और प्रेम का विचार जागरण होता है। सभी एक दूसरे की मदद करते हैं। किसी भी तरह व्रती को कोई कष्ट न हो इसका ख्याल सभी रखते हैं। लोग मांग मांग कर प्रसाद खाते हैं। बिना जातिभेद या वर्गभेद के। जैसे खट्टे नींबू 🍋 के साथ में मिठा ईंख और प्रायः स्वादहिन सुथनी सभी तरह के फल एक साथ अर्घ्य के डलिया में रहते हैं उसी तरह हर प्रकार के लोग समाज में एकता के साथ सामंजस्यपूर्ण तरिके से रहे। यही कहतहैं हमारी छठी मइया।

अगर वैज्ञानिक पक्ष देखा जाए तो वह भी जीवन के मंगलकामना के इस व्रत का उज्ज्वल पक्ष हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है। कहा जाता है कि जीवन का प्रारंभ जल से हुआ है। जीवन निरंतरता एवं सुचारू रूप से चलने के लिए ऊर्जा की अनिवार्य आवश्यकता है। जल का प्रतिनिधित्व जलाशय करते हैं और ऊर्जा का केंद्रीय स्रोत हैं सूर्य। निर्विवादित रूप से जीवन के पालक अर्थात देव। छठ पूजा जीवन के सर्जक और पालक के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकाश का पर्व है। यह अपने मे मानव और प्रकृति के बीच इस अन्योनाश्रय संबंध के रहस्य को समाहित किये हुए हैं। इसके प्रसाद को हम देखेंगे तो पायेंगे कि सभी सदःउत्पादित कृषि उत्पाद हैं। शीत शुरु होने से पहले ही ईंख के रस से पाचन शक्ति को ठीक करने का अवसर सभी को मिल जाता है। नीबू, गागल संतरे जैसे फल रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने के साथ-साथ शीतकालीन चर्म रोगों से लड़ने के लिए शरीर को तैयार कर देते हैं। चूकि ये फल पूजा के लिए आवश्यक है इसलिए सभी खरीदेंगे। खरीदेंगे तो खायेंगे भी। इससे पूरा परिवार और फिर वृहत्तम रूप में समाज स्वस्थ रहेगा। जिनके घर नही होता उनको सभी दे देते हैं। यह समाज के व्यवहार की सुंदरता है।

चार दिनों तक मगन रखने वाले,शरीर को शुद्ध, मन को निर्मल और आत्मा को उसके केन्द्र अर्थात परमात्मा की ओर ले जाने वाले इस पर्व के अवसर पर परिवार के सभी सदस्यों का एक दूसरे से मिलना जुलना हो जाता है। समाज का प्रकृति से जुड़ाव होता है। यह पर्व सच में समरसता का लोकपर्व है। छठी मइया सबका कल्याण करें और समाज समरसता एकता और प्रेम के इस संदेश के साथ जीवन जीये। विश्व का कल्याण हो यही कामना है। उगी हे सुरुज देव करी भिनुसार की प्रार्थना स्वीकार हो।