सोमवार, 30 जनवरी 2017

गांधी वध या हत्या??

साहब वध हो या हत्या, जीव की जीवन लीला तो समाप्त हो ही जाती है। बस शब्दों के प्रयोग और अर्थ है कि हमें उलझाये रहते हैं। मगर अर्थ के साथ-साथ अंतर्निहित भाव को महसूस करना महत्वपूर्ण है। अब आप ही देखिये न, बकरीद में गाय काटी जाए तो उसे कुर्बानी कहते हैं और मांस व चर्म के लिए काटी जाए तो कत्ल कहते हैं! साहब बेचारी गाय तो बकरीद में भी मांस और चर्म के रूप में ही उपभोग की गई और बाद में भी! मगर कत्ल और कुर्बानी के नाम पर अलग-अलग तरह का बर्ताव हुआ। गाय मरी!

अगर हमारे देश के कुछ जलते हुए ऐतिहासिक प्रश्नों पर समीचीन और समग्रता से इमानदारी पूर्वक विचार करने से बचा गया है तो उसमें से एक प्रश्न गांधीजी के अंत से जुड़ा है। आज इस चर्चा में मैं पूरी गहराई में नहीं जाऊंगा क्योंकि आप सुधि पाठक की धैर्य-परीक्षा नहीं करनी। मेरे मन में कुछ छोटे-छोटे प्रश्न उठते रहते हैं। फिर यदा कदा उन्हें बहला फुसला कर शांत कर देता हूँ। परन्तु आज 30 जनवरी को इनके हलचल को शांत नहीं कर पा रहा हूँ। हम दोनों के पास समयाभाव है सो संक्षिप्त में ही - गांधीजी का वध हुआ या हत्या हुई??
साधारणतः इस प्रश्न का उत्तर खेमों में बंटे हुए विद्वान अपने खेमें की भूत से भविष्य तक की चिंता करने के बाद तदनुसार देते हैं। एक ऐसी स्थिति खङी कर दी जाती है कि सत्य का आभास भर हो मगर सत्योद्घाटन न हो। मेरा जन्म गुलाम भारत में नहीं हुआ। न सद्यस्वतंत्र भारत में। हमारी पीढ़ी तो 'लिब्रलाइजेशन' के बाद के भारत को देख रही है। फिर ऐसे प्रश्नों के लिए हम संबंधित पुस्तकों और अपने चिंतन शक्ति पर आश्रित हैं। उभय पक्ष को पढना, समझना और मनन करना होगा। गांधी जी के अंत को समझने के लिए 1946 से 1948 के भारत को देखना पड़ेगा। उस समय के कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं की थोड़ी चर्चा करते हैं।

पाकिस्तान के निर्माण के लिए कलकत्ता को जिन्नावादीयों ने एक प्रयोगशाला के रूप में चुना क्योंकि यहाँ मुसलमानों की संख्या अधिक थी। 'बंगाल का प्रधानमंत्री' सुरावर्दी भी मुसलमान! 1946 साल 'द ग्रेट कलकत्ता किलिंग'!! आप कभी समय निकालकर विकिपीडिया में ही पढ लें। कहते हैं सुरावर्दी स्वयं उसकी मानिटरिंग कंट्रोल रूम से कर रहा था।खैर, शायद शहर था, लोग सक्षम थे। मंसूबे में सफलता नही मिली। परन्तु। हां जी परन्तु पाकिस्तान के निर्माण की प्रथम सफल प्रयोगशाला बनी - नोआखाली!!
अल्पसंख्यक हिन्दू थे। अत्याचारों की पराकाष्ठा से गुजर कर हिन्दू शून्य बनाया गया नोआखाली को। हिन्दूओं को इस विपत्ति से बचाने में कांग्रेस और गांधीजी असमर्थ रहे। पूर्णतः। शायद हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई की एकता और मुस्लिम लीग के राजनैतिक पेंच में फंसी रह गयी कांग्रेस और गांधीजी अहिंसा के नाम पर नोआखाली को कुर्बान कर दिये।
इधर पंजाब और काश्मीर जल रहे थे। सिंध, लाहौर, रावलपिंडी इन सब प्रांतों में मुस्लिम लीग ने अपना नोआखाली माॅडल लागू किया था। कांग्रेस और गांधीजी भी अपने-अपने माॅडल पर काम कर रहे थे।
आप जरा सोचिए तो कि जिस देश की जनता ने 1905 में बंगाल विभाजन को नहीं माना, वह किन परिस्थितियों में हिन्दुस्तान के विभाजन का दंश झेली होगी?
इन घटनाओं से देश की बहुसंख्यक जनता के मन में भय, अनिश्चितता, अनहोनी की आशंका और क्षोभ बढता जा रहा था। देश बंटा। कांग्रेस को सत्ता स्थानांतरित हुई। नेहरू व जिन्ना के स्वप्न साकार हुए मगर दिल टूटे लोगों के। संसार उजरा सिंध के व्यापारियों का। 'रावलपिंडी का बलात्कार' देखा दुनिया ने। रेलगाड़ियों ने लाशें ढोयीं। दिल्ली और बंगाल एवं निकटवर्ती प्रांत राहत शिविरों में तब्दील हो गए। ऐसी परिस्थिति में गांधीजी के पाकिस्तान को 55 करोड़ देने की जिद ने सरकार एवं चिंतनशील व्यक्तियों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी। भारत सरकार का फैसला बदला मगर इन घटनाओं से उद्वेलित गोडसे का मन नहीं बदला। वह मन खंडित भारत को और पिङित हिन्दूओं की व्यथा को सह नहीं पाया। लगा राष्ट्रहित की बलिवेदी पर गांधी जी को बलिदान होना ही होगा। गोली चली। प्रार्थना के जगह निकला,
हे राम!!
इस बिखरे राष्ट्र को आजादी की लड़ाई में एक करने वाले शांति, सत्य और अहिंसा के साधक महात्मा का अंत हो गया हिंसा के रास्ते। गांधीजी ने इस देश को एक साझा स्वप्न दिया था। सभी के योगदान अमूल्य हैं। अतुल्य हैं।
गांधी जी ने गलती की या अपने सिद्धांतों के नाम पर कुर्बान होने दिया नोआखाली को, नेहरू मोह और कांग्रेस की एकता के नाम पर टूट जाने दिया दिलों को बंट जाने दिया भारत को? गांधीजी मजबूर हो गए थे। मेरा यह स्पष्ट मानना है कि मोह, सिद्धांत और राजनैतिक पेंच में फंस गए थे बापू।
इस त्रिकोणीय बाधा ने जनभावना और भारतहित को उनकी आंखों से दूर रखा।
नाथूराम गोडसे के कृत्य से मैं असहमत हूँ पर भावना से सहमत ठीक वैसे ही जैसे गांधीजी के पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने की जिद के पिछे की भावना से सहमत हूँ परन्तु अनशन से असहमत। मेरे इस मत से सहमति अथवा असहमति प्रार्थनिय नहीं है।
उभय पक्ष, तत्कालीन परिस्थिति और कृत्यों की भावना सब हमारे समक्ष हैं। अब वध हुई या हत्या हमें सोचना है।
'गांधीजी की शिक्षा और उनका तत्वज्ञान 'नामक पुस्तक में श्री राजगोपालाचारी लिखते हैं कि "सरदार पटेल के यह शब्द थे कि गांधी जी पाकिस्तान को 55 करोड़ देने का हठ कर बैठे, जिसका परिणाम उन्हें उनके वध से मिला"
मेरा भी यही मत है कि राष्ट्र की बलिवेदी पर एक महात्मा का प्राणोत्सर्ग हुआ। समाज में समता, समरसता, एकता और प्रेम का संदेश और अपने सत्य के प्रयोग से कभी नहीं डिगने वाले महात्मा गांधी को उनके शहादत दिवस पर शत शत नमन और आपके अंदर स्थित प्रज्ञ आत्म को प्रणाम करता हूँ।

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