रविवार, 25 जून 2017

अखबार : दैनिक दुर्घटनाओं का दस्तावेज!

आज रविवार है। दोपहर के 12 बज चुके हैं। मगर अभी तक मैंने कोई अखबार नहीं पढी। कोई किताब नहीं पढी।सिर्फ महिने भर के अखबारों को पलटा है। मेरी विगत 6-7 वर्षों की आदत थी कि हर रविवार सुबह योग - ध्यान करने के बाद एक पूरा हिन्दी अखबार और साथ में विशेषांक भी, हर पन्ना, हर छोटा-बड़ा समाचार और कभी-कभी तो विज्ञापन एवं पाठकों के पत्र भी पुरी तन्मयता से पढता। आखिर पाई-पाई का हिसाब जो चुकता करना है। मगर सच बताऊं तो मेरी इस तन्मयता ने मुझे दिल खोलकर तनाव दिया!!

हमारे 'प्रिंसिपल सर' कहा करते थे कि रोज कोई न कोई "अणुव्रत" लिया करो मगर सच तो यह है कि कष्ट में इश्वर और उलझन में ही गुरूजनों के उपदेश हमें याद आते हैं। मैंने साहस किया और 'सात रोज के लिए थोड़ा बड़ा वाला अणुव्रत' ले लिया कोई भी अखबार नहीं पढने का। नही पढा। अभी मस्त हूँ और कुछ विचार करने पर मन में यह प्रश्न उठने लगता है कि आखिर ये अखबार है किसलिए?? हम सबकी 'बी पी हाई' करने के लिए?  जिनका 'बी पी'  'लो' वो तो ठीक है पर 'नॉर्मल' और 'हाई' वाले का क्या?

ग्यारहवीं में हिन्दी में एक विषय था पत्रकारिता। तभी पढा था कि भारत में पहला अखबार 'बंगाल गजट' वायसराय हिक्की के द्वारा निकाला गया था। स्वाभाविक रूप से अंग्रेजी में होगा। अंग्रेजी सरकार का पक्षकार पत्र। आम जनता की समझ से सात समन्दर दूर! फिर बांग्ला, उर्दू के भी अखबार निकले। हिन्दी का पहला अखबार 'उदंत मार्तंड' 30 मई 1826 को इन बादलों के बीच चमका। साप्ताहिक पत्र के रूप में।और ज्यादा इतिहास पर चर्चा की तो इतिहासकार बनने का डर है पर एक बात जो बहुत से विद्वानों और शोधकर्ताओं से बात करने पर सामने आयी कि स्वतंत्रता पूर्व के हिन्दी अखबार 'जनता तक जननेता, क्रांतिकारी और देश की विभिन्न घटनाओं, के संदेश पहुँचाने का सशक्त माध्यम' थे। अंग्रेजी सरकार की जनविरोधी नीतियों और प्रशासन तथा उनके अमलों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों को जनता को बताना और जनता की बात से सबको परिचित कराना, यह भूमिका निभाई थी हिन्दी अखबारों ने। जैसे कहां क्रांतिकारीयों ने ट्रेन लूटा, कहाँ अंग्रेज अत्याचारी अफसर की हत्या हुई, कहां अंग्रेजों ने जनता को नंगा कर पिटा, सङकों पर रेंग कर चलने के लिए मजबूर किया, कहां किसी अंग्रेज ने बलात्कार किया, डकैती आदि की खबरों के साथ-साथ गांधीजी ने कहां क्या कहा, अधिवेशन में क्या हुआ आदि खबरें होती थी। मोटे तौर पर देश की जनता को आजादी के आंदोलन की विभिन्न स्थितियों, कारणों, कार्रवाई और योजनाओं व निर्णयों से अवगत कराना व उनका मन तथा मनोबल बनाये रखना। यही उद्देश्य था। परन्तु आज??
मुझे याद आ रहा है एक दिन हमारे पी. जी. टी. हिन्दी सर (श्री प्रदीप कुमार मिश्रा) ने पत्रकारिता के वर्ग में कहा था कि

"अखबार  दैनिक दुर्घटनाओं का दस्तावेज है "


अब साहब सुंदरता किसको अच्छी नहीं लगती! चाहे वो सुंदर फूल हो या कली या फिर कोई वाक्य (जैसे आवारा आशिक सुंदर लडकियां खोजते हैं वैसे ही कलमगसिट जीव सुंदर वाक्य)। अखबार की यह परिभाषा बङी सटीक  मार कर रही है और शब्दों का संयोजन तो देखिये।  द - द के इस संयोजन ने, जब पहली बार सुना तभी मेरे 'रोम' में अपनी जगह बना ली। मजेदार बात यह है कि सनी देओल - करिश्मा कपूर की "अजय" में रूठे प्रेमी को मनाने के लिए प्रेमिका भी  धमकी देती है-

... आज मेरा दिल तोड़ के जा, कल पढ लेना अखबार में, इक लैला ने जान गवां दी मजनूं के प्यार में... 


 इन दिनों प्रकाशित  दैनिक दुर्घटनाओं का स्तर देखिये। हम कोई भी अखबार उठा लें। पूरे एक महीने का ले लिजिए। सबकी हेडलाइन और टैग लाइन एक संवेदनशील व्यक्ति को डराती है। मन में एक अजीब प्रकार का भय और अच्छे भविष्य के प्रति अनिश्चितता पैदा करती हैं। नाकारात्मकता को  पत्रकारिता के अनुभव व ज्ञान  की पूरी समझ व ऊर्जा के साथ, तस्वीरों से सजा कर परोसा गया होगा। घोटाले , भ्रष्टाचार, रेप, वी आई पी गिरफ्तारीयां, लूट, हत्या, तेजाब फेंकी, बलवे, दंगे, राजनीतिक समीकरण व शत्रुता, नस्लीय सोंच भङकाने वाली आदि हेडलाइन्स!! ये मैने सिर्फ लिखा ही नहीं है। आज पूरे तीन घंटे का समय देकर एक महिने की दो अखबारों की हेडलाइन्स का विश्लेषण कर कहा है।उपर जो तस्वीर है वह उनकी बानगी है।  अखबारों का नाम लेने से कोई फायदा नहीं। आप भी यह प्रयोग स्वयं करके देखें। आप यह सोंचने पर मजबूर हो जायेंगे कि इतनी नकारात्मकता आप अपने पैसे से वर्षों से खरीद रहे हैं। श्रद्धेय डॉ कलाम बहुत चिंतित रहते थे । उन्होंने अपने किताबों में विभिन्न घटनाओं के माध्यम से इसका उल्लेख किया है। इसरो से संबंधित खबरें जो छपती हैं वो सकारात्मक होती हैं। नव चैतन्यता देती हैं। 

मुझे लगता है कि भारतीय अखबार अभी भी स्वतंत्रता पूर्व वाले फार्मूले पर चल रहे हैं। अरे भई, वह तात्कालिक, उद्देश्य-प्रेरित  तथा आंदोलन व संघर्ष के प्रति सकारात्मकता का माहौल बनाये रखने के लिए की गई पत्रकारिता थी।( कुछ समाज संस्कार की पत्रिकाओं को छोड़ दें) 


पर क्या आज भी जरूरत है लूट, हत्या, नित्य होते रेप(!!) आदि को हेडलाइन बनाने और प्रथम पृष्ठ पर जगह देने की? आखिर कैसा समाज चाहते हैं हम? क्या  पत्रकारिता का लक्ष्य ' टी आर पी और रिडर्स नंबर' बढाने वाले विषयों पर चर्चा चलाते रहना है? 

अगर ऐसा है तो हम गलत जा रहे हैं। आज लगभग हर राजनीतिक दल का पोशुआ 'मिडिया हाउस' है। जिसकी सरकार है उसके पक्ष में चारण की तरह या फिर विपक्ष में विरोधी की तरह ये खङे रहते हैं। समाचार और सच में कितना अंतर होता है इसको मैने स्वयं देखा और अनुभव किया है। इसपर फिर कभी। आज समाचार बनाये जा रहे हैं और घटनाओं को रच कर हेडलाइन बन रहे हैं। एक महिने के अखबार इसके गवाह हैं। 

मैं व्यक्तिगत तौर पर पचास - साठ लोगों को जानता हूँ जिनके समर्पित प्रयासों से उनके कार्यक्षेत्र में आश्चर्यजनक रूप से सकारात्मक परिवर्तन हुआ है। अगर वो खबर बने तो वैसे सैकड़ों हैं जो इन सब क्षेत्रों में साहस कर निकल पङेंगे। समाज में सकारात्मक और थोड़ा अलग काम करना बहुत कठिन है मगर समय की मांग है। अब अखबारों को अपने हेडलाइन्स के संबंध में गंभीरता से विचार करना पड़ेगा नहीं तो सोशल मिडिया के "केन्फोलिस, योर स्टोरी,  आदि सकारात्मक समाचार वाली वेबसाइटें इनके सामने खड़ी हो जायेगी। 

दाऊद, दलित, दल, आदि की भङकाऊ खबरें अंदर के पृष्ठों में उतने ही जगह में देना जितने में अभी शहीदों की शहादत की खबर छपती है! सकारात्मक समाचार खोजना बहुत मेहनत वाला काम है और नाकारात्मक समाचार घर से निकलने पर ही मिलना शुरू हो जाता है। इस नकारात्मकता का कारण भी कहीं न कहीं वो सजी हुई खबरें हैं जो आज फिर एक अलग स्थान पर थोड़े परिवर्तित रूप में दिख रही है। 

हजारों पाठक देश-विदेश, संपादकीय और राष्ट्रीय खबर पढ कर अखबार रख दिया करते हैं। कभी-कभी मैं भी अब ऐसा ही करूंगा और इंतजार कर रहा हूं कि कब एक सकारात्मक खबर हेडलाइन बने। 

पितामह भीष्म ने सर शैय्या पर पङने के बाद उपदेश करते समय कहा था "जैसा अन्न वैसा मन"। 

मुझे लगता है " जैसा पठन वैसा चिंतन, जैसा चिंतन वैसा जीवन "


हमारे अखबार दैनिक दुर्घटनाओं से घटनाओं और फिर सुघटनाओं तक के दस्तावेज बनें और सकारात्मक सोच व शक्ति के संवाहक के रूप में पुन: 'उदंत मार्तंड' बन भारत के आसमान में चमके तभी विचार क्रांति प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचेगी। 
आपका जीवन सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर हो इसी शुभकामना के साथ आपके अंदर स्थित प्रज्ञ आत्मा को प्रणाम करता हूँ। 

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