गुरुवार, 12 जनवरी 2017

आओ साथी दीप बनें

सुबह-सुबह मोबाइल का अलार्म बज रहा था। अचानक हङबङा कर उठा। बगल में पङा हुआ था - उत्तीष्ठत जाग्रत! रात को सोते समय पढने की बिमारी है न! कन्याकुमारी में विवेकानंद शीला स्मारक के कर्मवीर माननिय एकनाथ रानाडे जी द्वारा संकलित स्वामी विवेकानंद की वाणी और लेखों का संग्रह।चेतना को अनुप्राणित कर देने वाला। ईवेंट रिमांइडर वाला एप्लिकेशन बता दिया - 12 जनवरी, युवा दिवस, स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन!

कुछ कार्यक्रमों में शामिल होने का सौभाग्य मिला। स्वामीजी के सजाये हुए फोटो पर गणमान्य लोगों ने माल्यार्पण, पुष्पार्पण किया। प्रदीप जलाये गये।नारे लगे - स्वामी विवेकानंद, अमर रहे - अमर रहे ;विवेकानंद के स्वप्नों का भारत, हम गढेंगे - हम गढेंगे आदि आदि।
इन नारों के शोर में मेरा चंचल मन और चंचल हो गया। अनायास मैं नवोदय विद्यालय सिवान के एसेंबली हाॅल में चला गया। साल 2013। स्वामी जी का 150 वां जन्मदिन महोत्सव। "हमारे महापुरुषों को हमने पत्थर की मूर्तियों के रूप में चौराहों पर सजा दिया है। उनके जन्मदिन और पुण्यतिथि पर माल्यार्पण करने और फूल चढ़ाकर फोटो खिंचवाने का रस्म निभाते हैं हम। उनके जीवन का संघर्ष और उनके आदर्श हमारे जीवन से गायब हो गए हैं...." इतना स्मरण होते ही मेरी चेतना फिर लौट आती है। बच्चों के बीच खीर और जलेबी बांटा जा रहा है। मेरे कान में गूंज रहे हैं पी जी टी मैथ सर (श्री अवधेश कुमार शर्मा, जवाहर नवोदय विद्यालय, सिवान) के वो शब्द जो उन्होंने 150 वीं जयंती के अवसर पर कही थी।
प्रिय साथी 12 जनवरी को भारत सरकार ने 1985 में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में घोषणा की थी। तब से आज तक अनुष्ठान वर्षानुक्रम से होते आ रहे हैं। हम भी कभी न कभी इसके साक्षी रहे होंगे। ऐसे अवसरों पर कार्यक्रमों का आयोजन और अन्य कर्मकांड आवश्यक हैं, उनका भी अपना महत्व और प्रभाव है परन्तु उससे भी ज्यादा आवश्यक है उस महापुरुष के आदर्शों का स्मरण, और तदनुसार यथासंभव कार्य में रूपांतरण। स्वामी विवेकानंद की वैश्विक स्तर पर पहचान - THE HINDU MONK OF INDIA ।पर उनको सबसे ज्यादा प्यार था - पुण्यभूमि भारत और दरिद्रनारायण से। उन्होंने हमें गुरुमंत्र के रूप में दिया - स्वदेश मंत्र!!
उनकी सारी योजनाओं के केन्द्र में रही भारत जननी और उनके प्रिय आशास्पद कार्यकर्ता - युवा, युवा, युवा!
स्वामी विवेकानंद ने कहा था -
"जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी हैं तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को कृतघ्न मानता हूँ जो उनके बल पर शिक्षित हुआ और अब वह उसकी ओर ध्यान नहीं देता "

हम सब इस बात से सहमत होंगे कि हमारे देश में असमानता की खाई बहुत गहरी और चौङी है।आंकङे यह बताते हैं कि हर तिसरा आदमी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने को मजबूर है। फिर जहां भोजन, पानी व आवास की सही और समुचित व्यवस्था नहीं है, वहाँ पर शिक्षा की स्थिति पर सोचने पर ललाट पर चिंता की रेखायें खिंचनी स्वाभाविक है। भारत की आर्थिक राजधानी में एशिया का सबसे बड़ा स्लम है। कलकत्ता, चेन्नई और दिल्ली की भी यही दशा हैं। महानगरों में दैनिक मजदूरी पर आश्रित परिवारों के बच्चों का भविष्य केवल शिक्षा ही सुधार सकती है। परन्तु शिक्षा की व्यवस्था??
अपर्याप्त। स्वामी जी के दरिद्रनारायण? उपेक्षित! सरकारी तंत्र की अपनी मजबूरी और व्यवस्थागत समस्याएं हो सकती है। परन्तु क्या हम भी मजबूर मानते हैं स्वयं को?? क्या अज्ञान के गहन अंधेरे में भटकता प्यारे भारत का भविष्य वह कृषकाय बालक हमें झकझोरता नहीं? जिन तोतली जुबानों से ककहरा दोहराया जाना चाहिए वे ग्राहकों से खाने का आर्डर मांगते समय हमें धिक्कारते नहीं?? क्या महापुरुषों के जन्मदिन और पुण्यतिथि पर इन बच्चों में बिस्कुट, चॉकलेट, खिर, जलेबी आदि बांट कर और उनसे ताली बजवाकर हम संतुष्ट हो सकते हैं??
हम अगर यह पढ सकते हैं तो शिक्षित हैं। हां, इस दौर में एक विद्यार्थी के रूप में हमारे सामने हमारे अपने भविष्य निर्माण की चुनौती है। कठिन समय है। हम अभी बेरोजगार भी हो सकते हैं मगर सच यह भी है कि हम बेकार नहीं हैं। हमारे पास शिक्षा है, इसे हम कुछेक घरों में बांट सकते हैं। कुछ को अंधेरे से बाहर निकाल सकते हैं। सच मानिये खोजने से हमारे आसपास ऐसे बच्चे हैं जिन्हें हमारी जरूरत है। बहुत जरूरत है। हम अपने मनोरंजन के समय का सदुपयोग एक अच्छे भारत के भविष्य निमार्ण के लिए कर सकते हैं। हम सिर्फ एक छोटे भाई या बहन को एक घंटे रोज पढाने का अणुव्रत ले लें तो हमारे महापुरुषों के, हमारे अपने,सपनों का भारत अवश्य अवतरित होगा। भारत एकदिन विश्व गुरु अवश्य बनेगा। बस उस महान प्रकाशपूंज में एक दीप हम भी हों। हमे यह सुनिश्चित करना होगा। स्वामी विवेकानंद की जयंती पर हम यह वादा स्वयं से करें - एक दिन, एक घंटा, एक भविष्य, एक भव्य भारत के लिए!!
स्वामी विवेकानंद के द्वारा कठोपनिषद की वह वाणी - उत्तीष्ठत् जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत, हमारा आह्वान कर रही है। उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक मत रूको।
पूरे भारत को शिक्षा के प्रकाश पूंज से आलोकित करने के ध्येय से , आओ साथी दीप बनें...
आप सभी का यह सुस्वप्न पूर्ण हो, प्रयास को उत्साह का वातावरण और साधना को आवश्यक साधन मिले माँ भारती से इसी प्रार्थना के साथ आप सभी के अन्दर स्थित प्रज्ञ आत्मा को मैं प्रणाम करता हूँ।

उत्तीष्ठ भारतः

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