मंगलवार, 13 सितंबर 2016

बिहार टाॅपर और शिक्षा में नैतिकता

हालंकि जो सत्य है हम उससे मूंह नही चुरा सकते हैं परन्तु एक बार पुनर्चिंतन की आवश्यकता है। हां, मै बात कर रहा हूँ "बिहार टाॅपर" मामले की। आज हमारी शिक्षा नीति, शिक्षण विधि, शिक्षक का दायित्व बोध और शिक्षा के उद्देश्य पर हमारा चिंतन सब शक के घेरे में है। एक विद्यार्थी के नाते मैं, एक अभिभावक, एक शिक्षक एक जिम्मेदार नागरिक के नाते आप,इससे मूंह नही चुरा सकते। हमने इस मुद्दे पर चुटकुले बनाये। चुटकियां ली। राजनैतिक आरोप प्रत्यारोप हुए। परन्तु समस्या के मूल में हम नहीं गये। हम इसे तात्कालिक और एक खास क्षेत्र की समस्या समझ लिया। कुछ दिन बाद ये चुटकुले, आरोप हम भूल जायेंगे फिर ऐसी समस्या उत्तर प्रदेश के डिग्री के बाजार में दिखेगी फिर कभी बंगाल में। ऐसे कर स्थान बदलते रहेंगे, समस्या बढती रहेगी परन्तु शिक्षा का उद्देश्य हमसे कोसों दूर चला जाएगा। आज हमारे पास डिग्री बेचने वाले अनेक विश्वविद्यालय हैं परन्तु विचारणीय यह है कि विद्यार्थियों के गुणात्मक विकास के लिए ये कितनी 'डिग्री तक समर्पित' हैं? इससे पहले की फिर कोई दूसरी रूबी राय सामने आये हम सभी को अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए 'सिटर' नही बनना चाहिए। शिक्षक को परीक्षा के दौरान ईमानदार और सचेत होना होगा। अभिभावकों को बच्चों मे सही संस्कार देने होंगे। विद्यालय विद्या दान करे न की डिग्री की दुकान बन जाये। और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हमे अपने शिक्षा नीति पर पुनर्विचार अवश्य करना चाहिए। काश भारत को दूसरे किसी 'टाॅपर घोटाले' को न देखना पङे।
शिक्षा अपने उद्देश्य से सभी को परिचित करा पाये।
@विकास 🌅🙏

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